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टीम अन्ना से नहीं संभला तो धक्का दे दिया आंदोलन को “Jagran Junction Forum”

the third eye
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भले ही टीम अन्ना के राजनीति में आने के फैसले को सही बताते हुए टीम के वरिष्ठ सदस्य और देश के पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण ये कहें कि जब सरकार जनता की अपेक्षा पर खरी न उतरे और जन दबाव को भी न माने तो राजनीतिक विकल्प देने के अलावा कोई चारा नहीं है, मगर सच्चाई ये है कि बिना रणनीति के किये गये आखिरी अनशन ने आंदोलन को एक ऐसे पड़ाव पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां आंदोलन का रास्त छोडऩे के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि टीम अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम छेड़ी वह वर्षों तक याद की जाती रहेगी और आगे किसी और आंदोलन का प्लेटफार्म भी साबित हो सकती है, मगर फिलवक्त आंदोलन की राजनीतिकरण कर दिये जाने से जहां आदोलन बलिदान हो गया है, वहीं टीम अन्ना भी एक अंधेरे रास्ते पर चलने को मजबूर है।
असल में टीम अन्ना को भ्रष्टाचार के खिलाफ जनसमर्थन मिला ही इस कारण कि भाजपा सहित समूचा विपक्ष इस दिशा में कुछ करने की स्थिति में नहीं था। आंदोलन तो भाजपा ने भी किया, मगर उसे केवल राजनीतिक उद्देश्य पूर्ति का ही मान कर जनता ने साथ नहीं दिया, जबकि अन्ना को गैर राजनीतिक होने के कारण जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ। अब जबकि खुद टीम अन्ना ही राजनीति में प्रवेश का ऐलान कर चुकी है, यह आंदोलन की हत्या तो है ही, खुद टीम अन्ना के लिए भी आत्मघाती है। चुनावी रणनीति के जो पैंतरे अपनाए जाते हैं, उसमें कहीं भी टीम अन्ना खरी नहीं उतर पाएगी। न उसके पास पैसा है और न ही संगठन का मजबूत ढ़ांचा। ऐसे में अगर वह चुनाव मैदान में उतरी तो चारों खाने चित हो जाएगी। टीम अन्ना के राजनीति में आने से देश को नई दिशा मिलना तो दूर, अब भविष्य में किसी जनहितकारी आंदोलन के लिए कोई हिम्मत तक नहीं जुटा पाएगा।
बेशक टीम अन्ना के मुताबिक राजनीति में स्वच्छ चरित्र वाले व्यक्तियों का प्रवेश होना चाहिए किंतु खुद टीम अन्ना में शामिल सदस्य अन्ना हजारे को छोड़ कर बहुत पाक साफ नहीं हंै। उन पर भी सवाल उठ चुके हैं। कभी अरविंद केजरीवाल पर आयकर विभाग ने उंगली उठाई, तो कभी किरण बेदी पर विमान की टिकट का पैसा बचाने का आरोप लगा। भूषण बाप-बेटे की जोड़ी पर भी तरह-तरह के आरोप लगे। सबसे ज्यादा विवादित हुए अपने घटिया बयानों की वजह से। और यही वजह है कि कांग्रेस या भाजपा का मजबूत विकल्प बनना तो दूर, उसके प्रत्याशियों को जमानतें तक बचाना भारी पड़ जाएगा।
असल में हुआ ये कि जिस अन्ना टीम ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया, उसी ने अपनी नादानियों, दंभ और मर्यादाहीन वाचालता के चलते उसे एक अंधे कुएं में धकेल दिया है। कुछ लोग भले ही यह तर्क देकर आंदोलन की विफलता को ढ़ंकना चाहते हैं कि टीम अन्ना ने देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागरण तो पैदा किया ही है। बेशक देश के हर नागरिक के मन में भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी भारी पीढ़ा थी और उसे टीम अन्ना ने न केवल मुखर किया और उसे एक राष्ट्रीय आंदोलन की शक्ल दी, मगर जिस अंधे मोड़ पर ले जाकर हाथ खड़े किए हैं, वह आम जनता धोखा है। हालत ये है कि खुद अन्ना आंदोलन में धरातल पर जुड़े लोग तक अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
वस्तुत: आंदोलन की परिणति ऐसी इस कारण हुई कि टीम अन्ना के सदस्य एकमत कभी नहीं रहे। अनेक मुद्दों पर मतैक्य न होने से उसके प्रति विश्वास कम होता गया। टीम अन्ना कितने मतिभ्रम में रही, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी जिन बाबा रामदेव से वह कोई संबंध नहीं रखना चाहती थी, बाद में उसी से मजबूरी में हाथ मिला लिया। उसके बाद भी बाबा रामदेव को लेकर भी टीम दो धड़ों में बंटी नजर आई। एक ओर बाबा रामदेव गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से गलबहियां करते रहे तो दूसरी और टीम अन्ना के सदस्य इस मुद्दे पर अलग-अलग सुर उठाते नजर आए। जहां तक टीम की एकता का सवाल है, अन्ना हजारे कहने मात्र को टीम लीडर थे, मगर भीतर अरविंद केजरीवाल की चलती रही। अकेले उनके व्यवहार की वजह से एक के बाद एक सदस्य टीम से अलग होते गए। टीम अन्ना कभी सभी राजनीतिक दलों से परहेज करती रही तो कांग्रेस को छोड़ कर अन्य सभी दलों के नेताओं के साथ एक मंच पर आई। यही कारण रहा कि शुरू में जो संघ व भाजपा कांग्रेस विरोधी आंदोलन होने की वजह से साथ दे रहे थे, वे खुद को भी गाली पडऩे पर अलग हो गए।
आंदोलन की परिणति इतनी खराब इस कारण हुई कि आखिरी अनशन बिना किसी रणनीति के शुरू हुआ। इसका दोष भले ही सरकार को दिया जाए कि उसने उनको इस बार गांठा ही नहीं, मगर यह टीम अन्ना की रणनीतिक कमजोरी ही मानी जाएगी कि नौवें दिन तक आते-आते किंकतव्र्यविमूढ़ हो गई। जब भीड़ नहीं जुटी तो उस टीम के होश फाख्ता हो गए। जब मीडिया ने भीड़ की कमी को दिखाया तो अन्ना के समर्थक बौखला गए। उन्हीं मीडिया कर्मियों से बदतमीजी पर उतर आए, जिनकी बदौलत चंद दिनों में ही नेशनल फीगर बन गए थे।
कुल मिला कर आंदोलन की निष्पत्ति ये है कि गलत रणनीतिकारों की मदद लेने से लाखों लोगों की आशा का केन्द्र अन्ना हजारे की चमक फीकी हो गई है, अलबत्ता उनकी छवि आज भी उजली ही है। बाकी पूरी टीम तो एक्सपोज हो गई है। शेष रह गया है आंदोलन, जो आज भी आमजन के दिलों में तो है, मगर उसे फिर नए मसीहा की जरूरत है। टीम अन्ना भले ही मजबूरी का बहाना बना कर अपने राजनीतिकरण को जायज ठहराए, मगर उसने एक सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन की हत्या का दी है और जो रास्ता चुना है, वह खुद उन्हें भी नष्ट कर देगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.comteam anna

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