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मानव जाति को कलंकित करते कन्या भू्रण हत्या के मसले को जैसे फिल्म स्टार आमिर खान अपने पहले टेलीविजन शो सत्यमेव जयते को उठाया है, वह इतना बड़ा मुद्दा बन गया है अथवा नजर आने लगा है कि मानो देश में उससे बड़ी कोई समस्या ही नहीं हो। मानो इससे पहले कभी इस मसले पर किसी ने कुछ बोला ही नहीं, किया ही नहीं या इसके समाधान के लिए कोई कानून ही नहीं बना हुआ है। ऐसा स्थापित किया जा रहा है कि जैसे आमिर एक ऐसे रहनुमा पैदा हुए हैं, जो कि इस समस्या को जनआंदोलन ही बना डालेंगे।
दरअसल इस कार्यक्रम का इतना अधिक प्रचार किया गया सभी इस शो को देखने के लिए उत्सुक हो गए और जाहिर तौर पर मुद्दा सही था, इस कारण कार्यक्रम को देखने के बाद हर कोई आमिर खान का गुणगान करने लगा। मीडिया की तो बस पूछो ही मत। वह तो रट ही लगाने लग गया। खास तौर पर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया। बेशक यह मुद्दा हमारी सबसे बड़ी सामाजिक बुराई से जुड़ा हुआ है और इस बुराई से निजात पाने के लिए सरकारें अपने स्तर कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहीं, मगर जैसे ही एक प्रसिद्ध फिल्म स्टार ने इस मुद्दे को उठाया, योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया, मीडिया ने उसे आसमान पर पहुंचा दिया। अब हर कहीं उसी की चर्चा हो रही है। यानि कि हमारी हालत ये हो गई है कि हम हमारे जीवन व समाज के जरूरी विषयों के मामले में भी मीडिया की बाजारवादी संस्कृति पर निर्भर हो गए हैं। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है ‘जिंदगी लाइवÓ नामक कार्यक्रम, जिसमें समाज के ऐसे ही चेहरों को उजागर किया जाता है, मगर चूंकि उसे ठीक से मीडिया ने प्रचारित नहीं किया, इस कारण उसकी चर्चा ही नहीं होती।
बाबा रामदेव को ही लीजिए। उन्होंने कोई नया योग इजाद नहीं किया है। वह हमारी संस्कृति की हजारों साल पुरानी जीवन पद्धति का हिस्सा रहा है। बाबा रामदेव के बेहतर योगी इस देश में हुए हैं और अब भी हैं तथा अपने-अपने आश्रमों में योग सिखा रहे हैं, मगर चूंकि बाबा रामदेव ने इलैक्ट्रॉनिक मीडिया का सहारा लिया तो ऐसा लगने लगा कि वे दुनिया के पहले योग गुरू हैं। प्राकृतिक चिकित्सा, ज्योतिष, वास्तु आदि बहुत से ऐसे विषय हैं, जो कि हमारी जीवन पद्यति में समाए हुए हैं, मगर अब चूंकि उन्हें मीडिया फोकस कर रहा है, इस कारण ऐसे नजर आने लगे हैं मानो हम तो उनके बारे में जानते ही नहीं थे। इसका सीधा अर्थ है कि हम जीवन के जरूरी मसलों पर भी तब तक नहीं जागते हैं, जबकि उसमें कोई ग्लैमर नहीं होता या मीडिया उसे बूम नहीं बना देता।
इसी सिलसिले में राजस्थान के चिकित्सा राज्य मंत्री डा. राजकुमार शर्मा के ताजा बयान पर गौर कीजिए। हालांकि उसमें राजनीति की बू आती है, मगर बात पूरी तरह से गलत भी नहीं।
उनका कहना है कि अभिनेता आमिर खान कन्या भूूण हत्या जैसे संवेदनशील मामले को लेकर टीवी शो सत्यमेव जयते के जरिये राजस्थान को बदनाम कर रहे हैं, जबकि प्रदेश में अन्य राज्यों की तुलना में काफी बेहतर हालात हैं। यहां की संवेदनशील सरकार पहले से ही इस दिशा में काफी काम कर रही है। शर्मा ने कहा कि आमिर भू्रण हत्या जैसे गंभीर मुद्दे को भी मनोरंजन का साधन बना रहे हैं, जो ठीक नहीं है। इस बात को आमिर खान भी यह कह कर स्वीकार कर चुके हैं कि मैं सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हूं। कार्यक्रम में वे एक शो के 3 करोड़ रुपए लेते हैं। समाचारों के मुताबिक वे इससे 20 करोड़ रुपए कमा चुके हैं। इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए वे कहते हैं कि आमिर तो पर्दे के हीरो हैं, जबकि वे रीयल हीरो। खान पर्दे पर तो मैं गांव-गांव जाकर लोगों को बेटी बचाने के लिए कह रहा हूं। मीडिया को लगता है कि आमिर खान के इस शो के बाद ही सरकार हरकत में आई है, जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस मामले में पहले ही काफी चिंतित हैं। उन्होंने बेटी बचाने के लिए हमारी बेटी, मुखबिर स्कीम जैसी कई योजनाएं पहले से चला रखी हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया को लगता है कि सरकार ने टास्क फोर्स आमिर खान के राजस्थान में आने के बाद बनाई है, जबकि हकीकत यह है कि इसकी घोषणा तो बजट में ही की जा चुकी थी।
डा. शर्मा के तर्कों से अलग हट कर सोचें तो यह ठीक है कि कन्या भ्रूण हत्या जैसे अमानवीय कृत्यों पर रोक के लिए आमिर की मुहिम सराहनीय है, मगर हमारे जागने का जो तरीका है, वह तो कत्तई ठीक नहीं है। एक बात और हम वास्तव में जाग भी रहे या नहीं, यह भी गौर करने लायक होगा। बेशक आमिर के कार्यक्रम से हो रहे असर की सराहना खूब हो रही है। अगर आमिर खान अपने एक टेलीविजन शो के जरिए एक बड़े बदलाव का आश्वासन जनता को दे रहे हैं तो हमें उन्हें समर्थन देना चाहिए। मगर एक तबका ऐसा भी है जो इस सवाल को गंभीरता से उठा रहा है कि क्या ऐसे कार्यक्रम के जरिए कन्या भू्रण हत्या जैसी गंभीर समस्याओं को सुलझाया जा सकता है? यह भी वाकई चिंतनीय है। हमारा जागना तभी सार्थक होगा, जबकि चर्चा भर न करके उस अमल भी करें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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