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क्या गहलोत की छुट्टी की नौबत आ सकती है?

the third eye
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राजस्थान विधानसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती वसुंधरा राजे कांग्रेस सरकार की बजाय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर व्यक्तिगत रूप से हमले पर हमले करती जा रही हैं, तो दूसरी ओर कांग्रेस विधायक दल में असंतोष बढ़ता जा रहा है। जाहिर तौर पर इस स्थिति से कांग्रेस हाईकमान चिंतित है। वह तो उत्तरप्रदेश में करारी हार की वजह से अपने कब्जे वाले राजस्थान के प्रति पहले से ही गंभीर था, मगर ताजा घटनाक्रम ने उसकी चिंता और बढ़ा दी है। अब सवाल यह उठने की नौबत आ गई है कि क्या गहलोत की छुट्टी कर दी जाएगी? समझा जा सकता है कि हाईकमान की कथित थोड़ी टेढ़ी नजर को भांप कर ही असंतुष्ट विधायक तो उछल रहे हैं। मौका ताड़ कर वसुंधरा ने भी कांग्रेस में चल रहे अंतर्विरोध का जिक्र करते हुए हमले तेज कर दिए हैं।
हालांकि असंतुष्ट विधायकों की संख्या कोई ज्यादा नहीं है, इस कारण यकायक तख्ता पटल जैसा खतरा तो नहीं है, मगर असंतुष्टों के जो तेवर हैं, उससे लगता है कि यदि जल्द ही हाईकमान ने स्थिति को नहीं संभाला तो आने वाले दिनों असंतुष्टों की संख्या और बढ़ जाएगी। असंतुष्ट विधायकों ने पिछले दिनों जिस तरह दिल्ली दरबार में जा कर खुले आम शिकायत की, वह बगावत का ही संकेत है। इस बगावत की बानगी देखिए कि कांग्रेस विधायकों के असंतुष्ट खेमे के अगुवा माने जाने वाले कर्नल सोनाराम ने गरम लोहे पर चोट करते हुए गहलोत की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया और उन्हें अडिय़ल करार दे दिया। सोनाराम ने खुल कर बयान दिया है कि उनकी मुख्यमंत्री से कोई निजी दुश्मनी नहीं है, मगर उनकी कार्यशैली उन्हें कत्तई पसंद नहीं है। सोनाराम ने कहा कि गहलोत अपने आपको गांधीवादी कहलाते हैं, मगर सच ये है कि वे एरोगेंट अर्थात अडिय़ल हैं। इसका खुलासा करते हुए वे कहते हैं कि यह अडिय़लपना ही है कि गहलोत कहते हैं कि असंतुष्ट विधायक उनके कहने से ही राहुल गांधी से मिलने गए थे। असल बात ये है कि विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री को विधायकों ने जब खूब घेरा तो उन्होंने घमंडी टोन वाले अंदाज में कहा कि मैं तीन बार पीसीसी चीफ रह लिया, तीन बार केंद्र में मंत्री रह लिया और दो बार मुख्यमंत्री बन गया, मेरे से शिकायत है तो आलाकमान को जा कर बोलो। एक अर्थ में यह आलाकमान को ही चुनौती है। जब गहलोत ने सुनवाई नहीं की तो आलाकमान से शिकायत की, जिसे गहलोत यह कह कर भ्रमित कर रहे हैं कि उनके कहने से ही वे ऊपर गए थे। सोनाराम ने कहा हम मुख्यमंत्री की मेहरबानी से नहीं अपने दम पर जीते हैं। यहां वन मैन शो नहीं चलेगा। सबने मेहनत की है तब पार्टी की जीत हुई है। सोनाराम की इस भाषा में साफ तौर पर चेतावनी महसूस की जाती है कि हरिदेव जोशी के समय भी विधायक असंतुष्ट थे, आखिर में उन्हें जाना पड़ा था। आज 15 असंतुष्ट विधायक हैं, 30-35 हो गए तो क्या स्थिति होगी?
दरअसल असंतुष्टों के इस रवैये से साफ लगता है कि इसके लिए खुद गहलोत ही जिम्मेदार हैं। जरूर उन्होंने इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया होगा, जिसकी वजह से असंतुष्टों को लामबंद हो कर दिल्ली जाना पड़ा। ऐसा प्रतीत होता कि या तो गहलोत पर वाकई हाईकमान का पूरा वरदहस्त है या फिर उन्हें यह फहमी हो गई है कि पार्टी के पास उनका कोई विकल्प नहीं है। तभी तो हाल ही बजट पेश करने के बाद प्रेस कान्फ्रेंस में उन्होंने यह तक कह दिया कि अगली सरकार कांगेस की होगी और मुख्यमंत्री भी वे ही होंगे। संभव है अपने दुबारा मुख्यमंत्री बनने की बात जुबान फिसलने से निकली हो, मगर इससे उनका दंभ तो झलकता ही है। इसी दंभ तो तोडऩे के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान को स्पष्ट करना पड़ा कि पार्टी में पहले से मुख्यमंत्री तय करने की परंपरा नहीं है। संभव है कि असंतुष्ट विधायक भी इसी बात से ज्यादा खफा हुए और उन्होंने इसे नमक मिर्च लगा कर हाईकमान के सामने रखा होगा। माहौल को बिगड़ता देख गहलोत को सफाई देने दिल्ली जाना पड़ा, भले ही इसे वे बजट पेश करने के बाद की रूटीन मुलाकात कहें।
हालांकि हाईकमान यकायक विधायकों के दबाव में झुकता तो नजर नहीं आता, मगर विरोध के स्वर जिस तरह से तेज हो रहे हैं, वह चिंतित जरूर है। उसे लगता है कि अब कुछ तो इलाज करना ही होगा। उसने बदलाव के संकेत तो दिए हैं और बदलाव होगा जरूर, विशेष रूप से संगठन में, मगर यह स्पष्ट नहीं है कि क्या गहलोत की छुट्टी करने की नौबत आ जाएगी। फिलहाल तो यही लगता है कि एक ओर गहलोत को तालमेल बैठाने को कहा गया है तो दूसरी ओर कुछ जरूरी बदलाव भी करने का आश्वासन दिया जा रहा है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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