Menu
blogid : 4737 postid : 74

…यानि अब ट्रेफिक पुलिस की जेब ज्यादा गरम होगी

the third eye
the third eye
  • 183 Posts
  • 707 Comments

तकरीबन बाईस पुराने सेंट्रल मोटर वीइकल एक्ट में संशोधन के प्रस्तावित बिल को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद एक ओर जहां यह उम्मीद की जा रही है कि इससे भारी अर्थ दंड से डर कर चालक ट्रेफिक नियमों की पालना के प्रति सजग होंगे, वहीं इस बात की भी आशंका है कि इससे ट्रेफिक पुलिस में पहले से व्याप्त भ्रष्टाचार और बढ़ जाएगा। दरअसल सरकार का सोच यह है कि जुर्माना कम होने के कारण चालक सुधरने का नाम ही नहीं ले रहे। वे ले दे कर छूटने कोशिश में रहते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब दो करोड़ लोगों ने पिछले साल ट्रैफिक नियमों को तोड़ा और जुर्माना भी चुकाया। अफसरों का कहना है कि जुर्माना राशि कम है। लोग नियम तोडऩे से नहीं डरते। ऐसे में सवाल यह है कि क्या वाकई में जुर्माना बढऩे के बाद लोग सुधर जाएंगे या हालात जस के तस बने रहेंगे। अक्सर यह देखने में आता है कि जिन नियमों के उल्लंघन में जुर्माने की राशि 100, 200 या 500 रुपये से ज्यादा है, उनमें जुर्माना भरने के बजाय मामला मौके पर ही निपटा लेने की कोशिशें की जाती हैं। यद्यपि आमतौर पर ये कोशिशें उल्लंघन करने वालों की तरफ से ही ज्यादा होती हैं, लेकिन कई ट्रैफिक पुलिसकर्मी भी मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकते। ऐसे में जब जुर्माना बढ़ जाएगा, तो मामला मौके पर ही निपटा लेने की कोशिशें भी बढ़ जाएंगी। यह सही है कि ट्रेफिक पुलिस को यातायात सप्ताह के दौरान अपेक्षित लक्ष्य हासिल करने होते हैं, मगर लक्ष्य की पूर्ति के अतिरिक्त आम तौर पर घूसखोरी ही चलन में है। इसकी वजह ये है कि जहां नियम का उल्लंघन करने वाला नियमानुसार चुकाए जाने वाली राशि से कम दे कर छूट जाता है, इस कारण वह संतुष्ट रहता है, वहीं ट्रेफिक कर्मचारी को जेब गरम होने के कारण संतुष्ट होना ही है। यानि मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी? चूना तो सरकार को ही लगता है। जब जुर्माना राशि बढ़ जाएगी तो स्वाभाविक रूप से घूसखोरी बढ़ जाएगी। यद्यपि इस आशंका भरी सोच को नकारात्मक माना जा सकता है, मगर जब तक घूसखोरी पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लगाया जाएगा, जुर्माना बढ़ाए जाने मात्र से हालत सुधरने वाले नहीं हैं। सौ बात की एक बात। जुर्माना बढ़ाने का सीधा सा मतलब है कि चालक सुधर नहीं रहा है। सुधर नहीं रहा है, इसका मतलब ये नहीं कि वह गंवार है, अपितु वह अधिक चतुर है। चालक इसके प्रति इतने जागरूक नहीं है कि सारे नियम उनके हित की खातिर ही बने हैं, बल्कि वह इसके प्रति अधिक जागरूक है कि ट्रेफिक पुलिस से कैसे बचा जाए। चालक जानता है कि अमुक-अमुक जगह पर ट्रेफिक पुलिस वाला नहीं होगा, उन-उन जगहों पर वह हेलमेट उतार देता है, सीट बैल्ट खोल देता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि केवल नियम कड़े करने और दंड बढ़ाने से तब तक सकारत्मक परिणाम नहीं आएंगे, जब तक कि ट्रेफिक पुलिस के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होंगे। हकीकत यही है कि संसाधनों की कमी के कारण ही नियमों का उल्लंघन होता है और दुर्घटनाएं होती हैं। रहा सवाल दुर्घटना में किसी की मृत्यु होने पर मुआवजा राशि चार गुना बढ़ाकर एक लाख रुपए करने की तो इसकी वजह से चालक दुर्घटना कारित कर किसी को मारेगा नहीं, ऐसा नहीं है, बल्कि महंगाई बढ़ जाने के कारण मौजूदा मुआवजा राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है, इस कारण उसमें वृद्धि की गई है। लब्बोलुआब, दंड बढ़ाए जाने से कुछ तो फर्क की उम्मीद की जा सकती है, मगर इससे चालक जागरूक हो जाएगा, इसकी संभावना कुछ कम ही है। उलटे भ्रष्टाचार बढ़ जाएगा। इस सिलसिले में ओशो रजनीश की ओर से दिए गए उदाहरण को लीजिए- हमारे देश के एक मंत्री इंग्लैंड के दौरे पर गए। कड़ाके की ठंड थी। वे रात को करीब एक बजे किसी कार्यक्रम से होटल को लौट रहे थे। अचानक ड्राइवर ने कार रोक दी। मंत्री जी ने देखा कि चौराहे पर लाल बत्ती हो जाने के कारण कार रुकी है। उन्होंने जब यह देखा कि चौराहा पूरी तरह से सुनसान है तो ड्राइवर से बोले कि जब कोई वाहन व राहगीर नहीं है और उससे भी बढ़ कर ट्रेफिक पुलिस भी नहीं है तो कार रोकने का क्या मतलब है? इस पर ड्राइवर ने चौराहे पर एक ओर खड़ी ठंड में ठिठुर रही एक बुढिय़ा की ओर इशारा किया कि जो हरी लाइट होने का इंतजार कर रही थी तो मंत्री जी को समझ में आ गया कि हम भारतीय भले ही देशभक्ति की ऊंची ऊंची ढीगें हाकें, मगर राष्ट्रीयता और नियमों का पालन करने के मामले में अंग्रेज हमसे कई गुना बेहतर हैं। अफसोस कि अंग्रेज हमें अंग्रेजी तो सिखा गए, मगर एटीकेट्स और मैनर्स अपने साथ ले गए।
-tejwanig@gmail.com

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh