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उमा विफल रहीं तो भी गडकरी बने रहेंगे अध्यक्ष

the third eye
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हालांकि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उत्तरप्रदेश में कई दिग्गजों को हाशिये पर रख कर चुनाव की कमान उमा भारती को सौंप कर न केवल उनकी, अपितु अपनी भी प्रतिष्ठा दाव लगा दी है, फिर भी माना जा रहा है कि यदि उमा के प्रयासों से भाजपा को कोई खास सफलता नहीं मिली तो भी गडकरी का कुछ नहीं बिगड़ेगा।
असल में एक बार पार्टी से बगावत कर अपनी नई पार्टी बनाने वाली उमा भारती को थूक कर चाटने के बाद मध्यप्रदेश से हटा कर उत्तरप्रदेश में चुनाव की कमान सौंपी तो वहां के दिग्गज नेता कलराज मिश्र सहित अन्य नेताओं ने नाराजगी जाहिर की थी। मिश्र ने तो यहां तक कह दिया कि उमा बाहरी हैं और उत्तरप्रदेश की वोटर नहीं हैं, इस कारण मुख्यमंत्री नहीं बनाई जा सकतीं, फिर भी गडकरी ने साफ कह दिया है कि यदि उत्तरप्रदेश में भाजपा को सफलता मिली तो सरकार उमा के नेतृत्व में ही बनेगी। जाहिर तौर पर इससे उमा विरोधियों के सीनों पर सांप लौट रहे होंगे। अब वे इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि यदि भाजपा का परफोरमेंस कमजोर रहे तो उसके लिए पूरी तौर पर उमा को जिम्मेदार ठहराया जाए, साथ ही दिसंबर में गडकरी का कार्यकाल 25 दिसंबर को पूरा होने पर उन्हें दुबारा अध्यक्ष न बनने दिया जाए, मगर सूत्रों का कहना है कि इससे उनकी स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
बताया जा रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गडकरी की कार्यशैली से पूरी तरह से संतुष्ठ है। इतना ही नहीं वह उनका कार्यकाल एक बार और बढ़ाना चाहता है। हालांकि पार्टी संविधान के अनुसार कोई भी लगातार दो बार अध्यक्ष नहीं बन सकता, परंतु पूर्व में किए गए संशोधन को दुबारा अपनाया जा सकता है।
असल में वह कट्टर हिंदूवादी उमा भारती और हिन्दुत्व के लिए समर्पित संजय जोशी को भाजपा में वापस लिए जाने व उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आगे रखने से गडकरी से खुश है। हालांकि उमा का जहां उत्तरप्रदेश के अन्य दिग्गजों ने विरोध किया और जोशी की वापसी पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी खफा हुए, इसके बावजूद संघ के कहने पर गडकरी ने उनको नजरअंदाज कर अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया है। उनके पक्ष में एक बात ये भी जाती है कि उनके नेतृत्व में भाजपा ने बिहार में अच्छा प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं झारखंड में भाजपा की गठबंधन सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को हटाने जैसा साहसिक कदम उठाया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया।
इससे भी बढ़ कर पार्टी की समस्या यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव लड़ाने के लिए उनके अतिरिक्त किसी और पर आम सहमति बनाना कठिन है। उन बनी हुई आम सहमति को न तो संघ छेडऩा चाहता है और न ही किसी नए को बनवा कर रिस्क लेना चाहती है। सच तो ये है कि आगामी चुनाव के लिए गडकरी ने पूरी तैयारी शुरू कर दी है। सर्वे सहित प्रचार अभियान को हाईटैक तरीके से अंजाम देने की तैयारी है। इसी से संकेत मिलते हैं कि उन्हें दिसम्बर में फिर से अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी देने का संकेत दिया हुआ है। संभव है नागपुर स्थित संघ के मुख्यालय में आगामी 15 से 17 मई तक होने वाली बैठक में गडकरी को कन्टीन्यू रखने पर विशेष रूप से चर्चा हो।

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