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भला चंद्रभान व गहलोत के बयान में फर्क क्या है?

the third eye
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कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.चन्द्रभान के यह कहने पर कि कांग्रेस संगठन कमजोर है, मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा ने बवाल खड़ा कर दिया, जबकि ठीक इसी प्रकार का बयान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ अलग ढंग से दिया तो उस पर कुछ नहीं बोले। ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्य सचेतक के रूप में उपकृत किए जाने के बाद उनके सुर बदल गए हैं।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस को कमजोर बताने पर हुए विवाद और विशेष रूप से रघु शर्मा की तीखी प्रतिक्रिया के बाद डॉ. चंद्रभान ने सफाई दी कि उनके कहने का मतलब यह नहीं था कि पार्टी की स्थिति ठीक नहीं है, बल्कि यह था कि हमें मजबूती के साथ आगे बढऩा चाहिए। वे चाहते हैं कि पूरा जोर लगाया जाए, जिससे राज्य के साथ ही केंद्र में भी दुबारा कांग्रेस की सरकार बने। दूसरी ओर प्रदेश स्तरीय समन्वयकों की बैठक में मुख्यमंत्री गहलोत ने भी संगठन कमजोरी पर चिंता व्यक्त करते हुए सेवादल पर नाराजगी जाहिर की। गहलोत ने समन्वयक कार्यशाला में कहा कि सेवादल को सालभर पहले ब्लॉक के हर गांव में एक कार्यकर्ता बनाने का टास्क दिया गया था, लेकिन अब तक एक भी ब्लॉक कार्यकर्ता ऐसा करने वाला नहीं मिला। यह चिंताजनक है। लब्बोलुआब वे भी यही कह रहे हैं कि संगठन की हालत ठीक नहीं है।
सवाल उठता है कि गहलोत जब चिंता जाहिर करते हैं तो उस पर कोई ऐतराज नहीं करता, जबकि चंद्रभान के ऐसा कहने पर हर कोई उनके पीछे हाथ धो कर पड़ गया। यहां तक सर्वाधिक मुखर होने का गौरव हासिल रघु शर्मा को भी गहलोत के बयान में कुछ भी गलत नजर नहीं आया। अर्थात जरूर कोई राज होगा। मोटे तौर पर भले ही यह समझ में आता है कि रघु शर्मा मुख्य सचेतक बनने के बाद बदल से गए हैं। इस कारण गहलोत के संगठन की हालत पर चिंता जाहिर करने पर चुप बैठे हैं।
इससे हट कर देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। गहलोत खेमा यह तथ्य स्थापित करना चाहता है कि संगठन ठीक से काम नहीं कर रहा है, ऐसे में अगर आगामी चुनाव में कुछ ऊंच-नीच होती है तो उसके लिए चंद्रभान जिम्मेदार होंगे। दूसरी ओर चंद्रभान की स्थिति ये है कि वे खुल कर नहीं बोल पा रहे कि सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है और उसकी कमजोर परफोरमेंस के चलते कांग्रेस की लोकप्रियता कम हो रही है। उनकी हालत देखिए कि खुद के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते संगठन के मुखिया होने और संगठन की हालत के लिए जिम्मेदार होने के बाद भी संगठन की खामी पर बोलने पर घेरे जा रहे हैं। यदि यही हाल रहा तो संभव है आगामी दिनों में संगठन व सरकार के बीच दूरियां और बढ़ें।

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