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उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की चुनावी नैया के खेवनहार महासचिव राहुल गांधी और उन्हीं के सहयोगी महासचिव मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का ये बयान काफी चौंकाने वाला है कि अगर यूपी में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगेगा। दोनों कह रहे हैं कि यूूपी में सरकार बनाने के लिये कांग्रेस सपा और बसपा से न तो समर्थन लेगी और न ही इन पार्टियों को अपना समर्थन देगी। हालांकि चुनावी मौसम में दिए जाने वाले ऐसे बयानों की सत्यता की कोई गारंटी नहीं होती, क्योंकि राजनीतिज्ञ वक्त बदलने के साथ ही बयान बदल देते हैं, मगर उनके इस बयान से इस बात के संकेत तो मिलते ही हैं कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही हार मान और स्वीकार कर ली है।
ऐसा प्रतीत होता है कि राहुल को यह साफ लग रहा है कि दिन-रात एक करने के बाद भी उनका जादू सीटें बढ़ाने के काम नहीं आ रहा है। इतना तो वे शुरू से ही अच्छी तरह से जानते होंगे कि कांग्रेस अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएगी। यदि नहीं जानते थे तो गलतफहमी में होंगे। हो सकता है वे इस गलतफहमी में हों कि उनके सघन दौरों से पासा पलट जाएगा, मगर अब जब कि मतदान होने जा रहा है और अनेक चुनावी सर्वे भी सामने आ गए हैं, उनको साफ दिखाई दे रहा है कि जैसा वे सोच रहे थे, वैसा होने नहीं जा रहा। और यही वजह है कि अब इस प्रकार का बयान दे रहे हैं। यदि कांग्रेस की यही नीति थी तो चुनावी अभियान शुरू होने से पहले ही स्पष्ट कर देते। अब जा कर यह बयान देने से यह भी लग रहा है कि वे मतदाताओं को इस बात की चेतावनी दे रहे हैं कि अगर स्थिर सरकार चाहिए तो कांग्रेस को वोट दो, अन्यथा राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाएगा।
राहुल के आखिरी दौर में इस प्रकार के बयान व लाल कृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी की आलोचना किये जाने को भाजपा ने भी बौखलाहट के रूप में लिया है। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज ने तो साफ कह दिया है कि चुनाव से पहले ही राहुल ने हार मान ली है। शाहनवाज हुसैन ने कहा कि राहुल ने स्वीकार किया है कि उनकी पार्टी यह चुनाव इसलिए लड़ रही है ताकि कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ा हो सके। उनके इस बात में भी दम है कि यदि कांग्रेस वाकई सपा व बसपा से समझौता नहीं करेगी तो फिर दिल्ली में क्यों बसपा और सपा की बैसाखियों के सहारे खड़ी है।
यदि धरातल की निष्पक्ष समीक्षा की जाए तो यह स्पष्ट है कि यूपी में वाकई किसी को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिखाई देता। बसपा की सीटें एंटी कंबेंसी के कारण कुछ कम होती नजर आ रही हैं, जबकि सपा सीटें बढ़ा सकती है। कांग्रेस व भाजपा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि वाकई कोई भी गठबंधन नहीं होता तो सरकार का गठन नहीं हो पाएगा। ऐसे में छह माह के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना ही होगा। देखने वाली बात ये होगी कि क्या भाजपा व कांग्रेस वाकई सपा व बसपा से गठबंधन नहीं करते। कांग्रेस तो घोषणा कर रही है, मगर वह इस पर टिकेगी या नहीं कुछ नहीं कहा जा सकता। रहा भाजपा का सवाल तो हालांकि उसका दावा है कि वह अपने दम पर सरकार बनाने जा रही है, मगर उसमें दम नजर नहीं आता। कांग्रेस व सपा उसकी दुश्मन नंबर वन पार्टियां हैं और बसपा से एक बार गठबंधन कर मजा चख चुकी है। कुल मिला कर इस बार दिलचस्प स्थिति होगी। देखते हंै क्या होता है।
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