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चिदंबरम की दाढ़ी में तिनका

the third eye
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यह सही है कि 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले के मामले में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के साथ सह आरोपी बनाने की सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका खारिज कर दी है और चिदंबरम को बड़ी भारी राहत मिल गई है, मगर खुद उनका यह कहना कि उन्होंने तो इस्तीफा तैयार कर रखा था, यह जाहिर करता है कि कहीं न कहीं उनमें अपराधबोध तो है ही। इसे ही तो कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका। यदि वे इतने ही पाक साफ थे और उनकी कोई भूमिका नहीं थी, तो उन्हें ये लगा ही कैसे कि कोर्ट उन्हें सह आरोपी बना देगा और उन्हें इस्तीफा देना होगा। उन्होंने खुशी जताई कि कोर्ट ने उन्हें बेकसूर माना है, यानि कि वे तो मन ही मन अपने आपको कहीं न कहीं कसूरवार मान ही रहे थे, जबकि कोर्ट ने उन्हें बेकसूर करार दे दिया। अर्थात उन्हें यह तो लग रहा था कि उनसे कुछ न कुछ गलती हुई है, मगर कोर्ट उन्हें दोषी मान भी सकता है और नहीं भी। ऐसी अधरझूल की स्थिति उनकी कमजोर मानसिकता को उजागर करती है। तभी तो आरोप लगाने वाले भाजपा नेताओं पर उनका जवाबी नहीं हुआ, जबकि कपिल सिब्बल उझल पड़े।
इस मसले पर कपिल सिब्बल का भाजपा नेताओं से माफी मांगना निश्चित रूप से बचकाना बात है। यह ठीक है कि कोर्ट ने चिदंबरम को कसूरवार नहीं माना है, लेकिन मोटे तौर पर तो वे भी नैतिक रूप से जिम्मेदार थे ही। ऐसे में विपक्ष के नाते भाजपा का चिदंबरम पर हमले करना गलत कहां था? राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं। सिद्ध तो कोर्ट को ही करना होता है। जाहिर तौर पर भाजपा को भी कोर्ट का फैसला मंजूर होगा ही। इस फैसले पर सिब्बल का खुशी में उछल कर भाजपा पर जवाबी हमला यह जता रहा है कि मानों उन्हें इस घोटाले पर कोई मलाल ही नहीं। क्या चिंदबरम को सह आरोपी न बनाने से इतने बड़े घोटाले के प्रति सरकार की जवाबदेही समाप्त हो जाती है? क्या कोर्ट ने ए. राजा को यूं ही जेल भेज दिया? क्या कोर्ट ने स्पैक्ट्रम के लाइसेंस यूं ही रद्द कर दिए? ऐसे ही अनेक ऐसे सवाल हैं, जिनका सिब्बल जैसे वरिष्ठ व तेज तर्रार वकील को देना आसन नहीं है।

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